Hindi Moral Story “Sarve Bhavantu Sukhin” “सर्वे भवन्तु सुखिनः” Best Motivational Story of “King Ashoka”.
सर्वे भवन्तु सुखिनः
Sarve Bhavantu Sukhin
प्रियदर्शी सम्राट् अशोक का जन्मोत्सव मनाया जा रहा था, इसलिए सभी प्रांतों के शासक उत्सव में शामिल होने के लिए पधारे थे। सम्राट् ने घोषणा की, “आज के शुभ अवसर पर सर्वश्रेष्ठ शासक को पुरस्कृत किया जाएगा।” जब राजा से सभी शासकों से उनके प्रांतों का हाल पूछा, तो उत्तरी सीमांत का शासक बोला, “महाराज, इस वर्ष मेरे देश की आय तिगुनी हो गई है।”
दक्षिण के प्रांत पति ने बताया, “इस वर्ष मेरे कोषागार में पिछले वर्ष की तुलना में दुगुना स्वर्ण एकत्रित हुआ है।”
पूर्व प्रांत के शासक ने सूचना दी, “पूर्वी सीमांत के उपद्रवियों का मैंने सफाया कर दिया है। अब किसी में हिम्मत नहीं की वह सिर उठाए।” पश्चिमी प्रांत के शासक ने बड़े गर्व से बताया, “मैंने सारे सेवकों के वेतन घटा दिए हैं। प्रजा पर कर बढ़ा दिए हैं, इससे आय कई गुना बढ़ गई है। अगले वर्ष के लिए आय के नये स्रोत खोजने का विचार है।” इसी प्रकार अन्य शासकों ने दूनी-तिगुनी आय होने की सूचना दी । अब बारी मगध के प्रांतीय शासक की थी। उसने विनम्र स्वर में कहा, “महाराज, क्षमा करें! इस वर्ष तो मेरे प्रांत में पिछले वर्ष से आधा ही धन जमा हुआ है।”
“वह क्यों ?” राजा ने पूछा। उसने जवाब दिया, “इस वर्ष राजसेवकों को कुछ सुविधाएँ दी गई हैं, इससे वे निष्ठा, ईमानदारी और परिश्रम से कार्य करते हैं। मैंने नागरिकों के भी कई कर घटा दिए हैं। वर्ष के अंत तक उनके लिए और भी धर्मशालाएँ, चिकित्सालय और पाठशालाएँ खोलने का विचार है।”
सम्राट् तुरंत उठ खड़े हुए और बोले, “मुझे प्रजा के रक्त से सनी स्वर्णराशि नहीं चाहिए। मेरी इच्छा है कि प्रजा सुखी रहे और उसे सुख-सुविधाएँ मिलती रहें। इस कारण सर्वश्रेष्ठ शासक मगध के शासक हैं और पुरस्कार पाने के अधिकारी वही हैं।”