Hindi Moral Story “Tenaliram ka Mariyal Ghoda”, “तेनालीराम का मरियल घोड़ा” for Kids, Full length Educational Story for Students of Class 5, 6, 7, 8, 9, 10.
तेनालीराम का मरियल घोड़ा
राजा कृष्णदेव राय का घोड़ा अच्छी नस्ल का था इसलिए उसकी कीमत ज्यादा थी। तेनालीराम का घोड़ा मरियल था। तेनालीराम उसे बेचना चाहते थे, पर उसकी कीमत बहुत ही कम थी। वे चाहकर भी बेच नहीं पाते थे।
एक दिन राजा कृष्णदेव राय और तेनालीराम अपने-अपने घोड़े पर सवार होकर सैर को निकले। सैर के दौरान राजा ने तेनालीराम के घोड़े की मरियल चाल देखकर कहा, ‘कैसा मरियल घोड़ा है तुम्हारा, जो कमाल मैं अपने घोड़े के साथ दिखा सकता हूं, वह तुम अपने घोड़े के साथ नहीं दिखा सकते।’
तेनालीराम ने राजा को जवाब दिया, ‘महाराज जो मैं अपने घोड़े के साथ कर सकता हूं वह आप अपने घोड़े के साथ नहीं कर सकते।’
राजा मानने को जरा भी तैयार नहीं थे। दोनों के बीच सौ-सौ स्वर्ण मुद्राओं की शर्त लग गई।
दोनों आगे बढ़े। सामने ही तुंगभद्रा नदी पर बने पुल को वे पार करने लगे। नदी बहुत गहरी और पानी का प्रवाह तेज था। उसमें कई जगह भंवर दिखाई दे रहे थे।
एकाएक तेनालीराम अपने घोड़े से उतरे और उसे पानी में धक्का दे दिया।
उन्होंने राजा से कहा, ‘महाराज अब आप भी अपने घोड़े के साथ ऐसा ही करके दिखाइए।’
मगर राजा अपने बढ़िया और कीमती घोड़े को पानी में कैसे धक्का दे सकते थे। उन्होंने तेनालीराम से कहा, ‘न बाबा न, मैं मान गया कि मैं अपने घोड़े के साथ यह करतब नहीं दिखा सकता, जो तुम दिखा सकते हो।’
इस पर राजा ने तेनालीराम को सौ स्वर्ण मुद्राएं दे दीं।
‘पर तुम्हें यह विचित्र बात सूझी कैसे?’ राजा ने तेनालीराम से पूछा।
‘महाराज, मैंने एक पुस्तक में पढ़ा था कि बेकार और निकम्मे मित्र का यह फायदा होता है कि जब वह नहीं रहे, तो दुख नहीं होता।’ तेनालीराम की यह बात सुनकर राजा ठहाका लगाकर हंस पड़े।