Hindi Moral Story “Jeev ko Stana nhi Chahiye”, “जीव को सताना नहीं चाहिए” for Kids, Full length Educational Story for Students of Class 5, 6, 7, 8, 9, 10.
जीव को सताना नहीं चाहिए
Jeev ko Stana nhi Chahiye
माण्डव्य ऋषि तपस्या में लीन थे। उधर से कुछ चोर गुजरे। वे राजकोष लूट कर भागे थे। लूट का धन भी उनके साथ था। राजा के सिपाही उनका पीछा कर रहे थे। चोरों ने लूट का धन ऋषि की कुटिया में छिपा दिया और स्वयं भाग गये। सिपाही जब वहाँ पहुँचे तो चोरों की तलाश में कुटिया के भीतर गये। चोर तो नहीं मिले पर वहाँ रखा धन उन्हें मिल गया। सिपाहियों ने सोचा कि निश्चित ही बाहर जो व्यक्ति बैठा है, वही चोर है। स्वयं को बचाने के लिये साधु का वेष बना, तपस्या का ढोंग कर रहा है। उन्होंने ऋषि को पकड़ लिया और राजा के सामने ले जाकर प्रस्तुत किया। राजा ने भी कोई विचार नहीं किया और न ही पकड़े गये अभियुक्त से कोई प्रश्न किया और सूली पर लटकाने की सजा सुना दी। माण्डव्य ऋषि विचार करने लगे कि ऐसा क्यों हुआ? यह उन्हें किस पाप की सजा मिल रही है? उन्होंने अपने जीवन का अवलोकन किया, कहीं कुछ नहीं मिला। फिर विगत जीवन का अवलोकन किया। देखते- देखते पूरे सौ जन्म देख लिये, पर कहीं उन्हें ऐसा कुछ नहीं दिखाई दिया जिसके परिणाम स्वरूप यह दण्ड सुनाया जाता। अब उन्होंने परमात्मा की शरण ली। आदेश हुआ, ‘ऋषिअपना १०१ वाँ जन्म देखो।’ ऋषि ने देखा ‘‘एक ८- १० वर्ष का बालक है। उसने एक हाथ में एक कीट को पकड़ रखा है। दूसरे हाथ में एक काँटा है। बालक कीट को वह काँटा चुभाता है तो कीट तड़पता है और बालक खुश हो रहा है। कीट को पीड़ा हो रही है और बालक का खेल हो रहा है।’’ ऋषि समझ गये कि उन्हें किस पाप का दण्ड दिया जा रहा है। पर वह तो तपस्वी हैं। क्या उनकी तपस्या भी उनके इस पाप को नष्ट न कर पाई थी? ऋषि विचार ही कर रहे थे कि कुछ लोग जो ऋषि को जानते थे, वे राजा के पास पहुँचे और ऋषि का परिचय देते हुए उनकी निर्दोषता बताई। राजा ने ऋषि से क्षमायाचना करते हुए ऋषि को मुक्त कर दिया। इतनी देर में क्या- क्या घट चुका था। भगवान् का न्याय कितना निष्पक्ष है, कितना सूक्ष्म है। इसे तो ऋषि ही समझ रहे थे। मन ही मन उस कीट से क्षमा याचना करते हुए वे पुनः अपनी तपस्या में लीन हो गये।