Hindi Essay, Nibandh on “भारत में बेरोज़गारी की समस्या”, “Unemployment Problem in India” Hindi Paragraph, Speech for Class 6, 7, 8, 9, 10 and 12 Students.
भारत में बेरोज़गारी की समस्या
जब काम करने के इच्छुक लोगों को अपनी जीविका चलाने के लिए उपयुक्त काम नहीं मिलता, तो इस स्थिति को ‘बेरोजगारी’ कहा जाता है। बेरोजगारी के अनेक रूप हो सकते हैं-कुछ लोग वर्ष में कुछ महीने काम करते हैं तथा कुछ महीने बेकार रहते हैं, कुछ व्यक्ति ऐसे हैं जिन्हें अपनी योग्यता तथा कुशलता के अनुरूप काम नहीं मिलता। बेरोजगारी का एक रूप प्रच्छन्न बेरोजगारी भी है। जैसे एक दुकान यदि पाँच आदमियों का पेट भर सकती है और यदि उस पर दस आदमी लगे हों, तो यह बेकारी का प्रच्छन्न रूप है। ये पाँच अतिरिक्त आदमी प्रच्छन्न रूप से बेरोजगार हैं। भारत में शिक्षितों. अशिक्षितों दोनों वर्गों में बेरोजगारी व्याप्त है। अशिक्षित बेरोजगार तो कोई भी काम करके जीविका चला लेते हैं, पर शिक्षित व्यक्ति अपनी योग्यता तथा शिक्षा के अनुरूप ही काम चाहता है, इसीलिए उसकी स्थिति अधिक दयनीय है। बेरोजगारी के कारणों में मुख्य है-जनसंख्या में वृद्धि। जनसंख्या जिस तेजी से बढ़ती है. उस अनुपात में रोजगार के अवसर नहीं बढ़ाए जा सकते। यद्यपि स्वतंत्रता के बाद भारत में उद्योग-धंधों का जाल बिछाया गया है, तथापि जनसंख्या इतनी तीव्र गति से बढ़ी है कि बेरोजगारों की संख्या पर अंकुश नहीं लग पाया है। बड़े-बड़े उद्योगों के कारण कुटीर तथा लघु उद्योगों के ह्रास ने भी बेरोजगारी को बढ़ाया है। आज कोई भी शिक्षित व्यक्ति हाथ से काम करने को तुच्छ मानता है तथा बाबूगिरी करना अधिक पसंद करता है। ग्रामीण युवक अपना पैतृक व्यवसाय अपनाना नहीं चाहते। निर्धनता, कृषि का पिछड़ापन, दूषित शिक्षा-प्रणाली तथा ग्रामीण जनसंख्या की शहरों की ओर पलायन की प्रवृत्ति भी बेकारी को बढ़ाने में पीछे नहीं हैं। बेकारी के कारण आज अपराध, चोरी, डकैतियाँ आदि बढ रहे हैं। यदयपि बेकारी की समस्या पर अकुंश लगा पाना सरल नहीं है तथापि शिक्षा-प्रणाली में सुधार करके, कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देकर, जनसंख्या की वृद्धि पर अंकुश लगाकर इसे किसी सीमा तक नियंत्रित अवश्य किया जा सकता है। शिक्षा-प्रणाली में इस प्रकार का बदलाव किया जाए कि वह आजीविका से जुड़ी हो अर्थात् केवल डिग्रियाँ न बाँटी जाएँ, व्यावसायिक शिक्षा पर भी जोर दिया जाए।