सुखस्य मूलं धर्मः Sukhsay mool dharma फारस के बादशाह नौशेरवाँ-ए-आदिल अपनी न्यायप्रियता एवं दयालुता के लिए प्रसिद्ध हैं। उनके पिता कोबाद अपना पारसी धर्म त्यागकर मजदक नामक एक पाखंडी द्वारा चलाए गए मजदकी धर्म के अनुयायी हो गए थे। इस धर्म...
सर्वे भवन्तु सुखिनः Sarve Bhavantu Sukhin प्रियदर्शी सम्राट् अशोक का जन्मोत्सव मनाया जा रहा था, इसलिए सभी प्रांतों के शासक उत्सव में शामिल होने के लिए पधारे थे। सम्राट् ने घोषणा की, “आज के शुभ अवसर पर सर्वश्रेष्ठ शासक को पुरस्कृत...
सब धन धूरि समान Sab Dhan Dhuri Samaan एक बार महाराणा रणजीतसिंह के दरबार में एक महात्मा आया। उन्होंने उसका आदर-सत्कार किया और वे उसे अपने कोषागार में ले गए। जब उन्होंने उसे हीरे, पन्ने, मोती, नीलम आदि बहुमूल्य रत्नों का...
दुर्बल को न सताइए Durlab ko na sataiye बगदाद का बादशाह हारूँ-अल-रशीद ने प्रजा पर ‘नमक-कर’ लगाया और नगर में डौंडी पिटवाई कि हर नागरिक को अपनी आय की पच्चीस प्रतिशत राशि नमक-कर के रूप में बादशाह के खजाने में जमा...
तृष्ना केहि न कीन्ह बौराया Trishna Kehi na Kinha Boraya राजा विश्वकेतु ने राजकुमारी को शिक्षा देने के लिए एक ब्राह्मण को नियुक्त किया था। वह ब्राह्मण था तो प्रकांड विद्वान्, लेकिन नित्य राजसी वैभव को देखते-देखते उसके मन में लोभ...
त्याग को भूषन शांति पद Tyag ko Bhushan Shanti pad विजय के गर्व से चूर सिकंदर ईरान की सड़कों पर जा रहा था। भयभीत नागरिक झुक-झुककर अभिवादन कर रहे थे। इतने में उसके सेनापति ने कहा, “जहाँपनाह, यहाँ पास ही कोई...
जात-पाँत छिपै नहीं Jaat-Paat Chipe Nahi एक बार अकबर बादशाह के दरबार में पाँच साधु आए। जब बादशाह ने उनसे उनकी जाति पूछी, तो उनमें से एक ने फौरन जवाब दिया, “जात-पाँत पूछै नहिं कोय।” अन्य चारों ने भी उसके कथन...
अपशब्दों का परिणाम Apshabdo ka Parinam महाराष्ट्र की संत बहिनाबाई का विवाह अल्पायु में ही शिवापुर के प्रौढ़ जोशी के साथ हुआ था, जो कि बड़ा ही नास्तिक था, जबकि बहिनाबाई हमेशा धर्म-चिंतन में लीन रहती थीं। एक बार विट्ठल-मंदिर में...
अंतर Antar एक बार मुस्लिम संत राबिआ मक्का-मदीने की यात्रा पर निकलीं। वे बूढ़ी हो गई थीं। उन्हें इस अवस्था में पैदल चलते देख खुदा को रहम आया और काबा खुद उनके स्वागत के लिए आगे आया। इससे ह करने आए...
समदर्शिता Samdarshita काश्मीर में लल्लेश्वरी नामक एक संत हो गई हैं। उनका विवाह बारह वर्ष की अवस्था में हुआ था, किन्तु ससुराल में उनके प्रति दुर्व्यवहार होने से उन्होंने घर का त्याग कर दिया और सेदवायु नामक एक संत से दीक्षा...